प्लेनचिट Plenchit

                         तकरीबन बीस साल  पहले  की  बात है |  मैं अमृतसर से ओसीएम मिल्स की सेवा छोड़ कर राज्य सरकार की सेवा में इसलिये आया था कि गृह जिले में रहने का सुख प्राप्त होगा , किन्तु नियति को तब शायद यह स्वीकार नहीं था |  

                     मेरी प्रथम नियुक्ति जैसलमेर में तब के मुख्य अभियंता कार्यालय,  जैसलमेर में हुई |    वहाँ एक ही बैच के हम लगभग आठ जनों नें मिलकर एक नवनिर्मित मकान किराये पर ले लिया जिसमें हम सब अकेले जिसे स्थानीय भाषा में “छड़ा” कहा जाता है, निवास करने लगे |  सब मिलजुल कर भोजन बनाते, खाते और एक साथ सरकारी माल खाते हुए गृह जिले में स्थानांतरण न होने के कारण सरकार को  समवेत स्वर में कोसते | कुल मिला कर अच्छी बीत रही थी | 

                       सिर्फ एक समस्या थी जो कि अत्यन्त गम्भीर रूप ले चुकी थी  और वो यह थी कि सफाई के मामले में सभी साथी कुछ इतने लापरवाह थे कि मकान का  सफेद सँगमरमर का फर्श काले  कोटा  स्टोन का  आभास देने लगा था |  किचन के प्लेटफॉर्म पर लगी डिजाइनर वॉल टाईल्स नूतन स्टोव के धुएं से इस कदर प्रभावित हो गई थी कि अपना मूल स्वरूप त्याग कर उसी के रंग में रंग गई |  मकान मालिक जिसने शुरुआत में ही “फैमेली” को मकान देने की जिद की थी और जो दुगुने किराये के लालच में हमें मकान किराये पर दे बैठा था ,  उसे हम महीने की शुरआत में किराया उसके घर पर सिर्फ इसलिये पहुंचा देते थे क्योंकि हमें   क्योंकि हमें डर था कि यदि वो किराया लेने आया तो  कि मकान की दशा देख कर वो हमें खड़े पांव निकाल बाहर करेगा |  

                      मैंने सफाई के लिये कई बार साथियों के जमीर को ललकार, बल याद दिलाया पर किसी के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी |  फिर मेरे दिमाग में वो शैतानी खयाल आया जिसके कारण मैं इस घटना को सम्पूर्ण जीवनकाल में नहीं भूल सकता |  

                       मैंने उन्हें बताया कि मैं प्लेनचिट लगाना जानता हूँ जिससे किसी भी आत्मा को बुलाकर और उससे प्रश्न कर के  भविष्यफल जाना जा सकता है | 

                       इस विधा के बारे में मैं सिर्फ इतना जानता था कि एक लकड़ी के पाटे पर अंग्रेजी के ए से लेकर जेड तक तमाम अक्षर लिखे जाते हैं  और एक से  नौ तक  अंक लिखे  जाते हैं |  साधक अपनी मन्त्र विधा से किसी भी आत्मा को बुलाता है जो कि उसी लकड़ी के पाटे पर रखी छोटी सी कटोरी में आ जाती है और साधक की ऊँगली से दबी वो कटोरी चलायमान हो जाती है |  प्रश्न पूछे जाने पर कटोरी आवश्यकतानुसार शब्दों और अंकों पर गति करके  जवाब देती है जिसे कि एक जना कागज कलम लेकर क्रम से लिखता जाता है जिसमें की जवाब का पूरा वाक्य बन जाता है | 

                         उक्त ज्ञान के अतिरिक्त तब मुझे यह अतिरिक्त ज्ञान भी था कि यह सब फर्जी बात है, तथाकथित साधक की ऊँगली की कारीगरी है | यह अतिरिक्त ज्ञान मेरे शेष साथियों को नहीं था | 

                          मेरी बात को अत्यंत गम्भीरता से लिया गया |  मैंने माहौल बनाने के दृष्टिकोण से एक अमावस्या की रात का चयन किया और बताया कि सम्पूर्ण मकान में मैल का एक भी कतरा नहीं रहना चाहिये |  निर्धारित दिन पर शाम को पांच बजे के आसपास मकान का जबरजस्त सफाई अभियान अभियान प्रारम्भ हुआ जो कि रात्रि दस बजे तक चला |  पूरा मकान चमचमा उठा था |  मेरा प्रयोजन पूर्ण हुआ था, अब उनका पूर्ण करना था | 

                       लकड़ी के एक पाटे की व्यवस्था दिन में कर ली गई थी जिस पर स्केच पेन से सभी अक्षर और अंक बना दिए गए थे | रात के बारह बजे के करीब हम सब स्नानशुद्धि करके निर्धारित कमरे में उपस्थित थे |  पूरे कमरे में धूप लोबान की सुगंध कर दी गई थी |  मैं उस पाटे के समक्ष आसन के अभाव में एक धुली हुई चादर पर बैठा था और उस पाटे के पीछे मेरी तरह अभिमुख सारे साथीगण बैठे थे | माहौल अत्यन्त गम्भीर था जिसका कि  मैं  मन ही मन  आनंद ले  रहा था |  

                            मैंने कटोरी पर दाएं हाथ की तर्जनी रखी और आँख से इशारा किया जिसके कि बाद सभी साथी समवेत अत्यंत गम्भीर आवाज में आह्वान करने लगे       “आ जाओ ..आ जाओ..आ जाओ”  उनके इस आह्वान में किसी का जिक्र नहीं था कि कौन आ जाओ |  मुझे अंदर ही अंदर गुदगुदी सी हो रही थी और मैं हंसी को मुश्किल से रोके बैठा था |  यह दौर कोई पांचएक मिनट चला होगा कि मेरा कलेजा उछल कर जैसे हलक में आ फंसा | मेरी ऊँगली के नीचे दबी कटोरी में कुछ हरकत हुई थी, वो अपनी जगह पर जैसे फुदकी  |  लगा जैसे कोई छोटा जानवर कटोरी में हो | मैंने सप्रयास अपनी तर्जनी से उसे जोर से दबा दिया |  मेरे कंठ सूख गए थे और शरीर के सभी रोमछिद्रों में जैसे पसीना उगलने की होड़ मच गई |  मैंने बहुत मुश्किल से बोला ” आ गई..” मेरी क्षीण सी आवाज उनके आह्वान में दब कर रह गई |  मैंने पुनः जोर से कहा  “आ गई ..”  इस बार जैसे चीख निकल गई थी | उनके चेहरों पर आशा चमकने लगी थी |  मेरे सानिध्य में वे स्वयं को पूर्ण सुरक्षित अनुभव कर रहे थे | मेरी समस्या यह थी कि मुझे आत्मा बुलाना आता था न ही भेजना | 

“आओ….आओ” की तर्ज पर  “जाओ ..जाओ” करने से उसके जाने की मुझे कोई संभावना नहीं दिखी ऊपर से एक अतिरिक्त ज्ञान उस घड़ी ही याद आया कि आई हुई आत्मा अगर दुष्टात्मा हो और बेकाबू हो जाए अर्थात कटोरी पलट जाए तो साधक या उपस्थित लोगों में से किसी को भी मार सकती है अक्षरशः शब्द थे “साथ ले जाती है”  | 

                      कमरे में पिन ड्राप  साइलेन्स हो  गया  था | सब आशापूर्ण नेत्रों से मेरी और देख रहे थे | कागज कलम वाला साथी भी सावधान मुद्रा में आ गया था |  कटोरी हल्के हल्के फुदक रही थी |  मैंने अनुभव किया कि अगर मेरा डर उनको ज्ञात हो गया तो आत्मा किसी को ले जाए न ले जाए , कोई भय के मारे ह्रदय गति रुकने से मर सकता था | मैंने खुद को मुश्किल से सम्भाला और जैसा सुना था रिवाज अनुसार प्रथम प्रश्न किया “कौन हो तुम ?”  कटोरी में मेरे इस प्रश्न के बाद कुछ तेज  हलचल  हुई   और वो  खिसकने लगी | मैंने उस पर ऊँगली का दबाव बनाए रखा | 

                        कटोरी होले होल खिसक कर अंग्रेजी के “के” अक्षर पर पहुंची जिसे कागज कलम वाले मित्र ने नोट कर लिया फिर वो खिसक कर “एम” पर ठिठकी फिर “एल” पर | कटोरी इसके बाद कुछ क्षण रुकी होगी फिर उसकी गति तेज हो गई और पुनः “के” पर पहुंच गई जहां से और  तेज  गति से  “एम”  फिर  “एल” |  अब कटोरी गति पकड़ चुकी थी | मैं उस पर तर्जनी का दबाव बनाए रहा | वो लगातार के एम और एल पर घूम रही थी |  मेरे पूरे जिस्म से पसीना फूट रहा था | कुछ देर में पसीने के कारण कटोरी जैसे मेरी ऊँगली के नीचे से फिसल गई और लगभग एक मीटर दूर फर्श पर जाकर गिरी | कमरे की नीरवता में उस कटोरी के गिरने की आवाज अत्यन्त विचलित करने वाली थी |  मैं बुरी तरह घबरा गया और अपने ईष्टदेव को याद करने लगा |   मुझे सभी की जान  खतरे में लगी | मैंने सबको बताया कि यह कोई दुष्टात्मा है और मेरे काबू से बाहर है , इसलिये हनुमान चालीसा का जाप शुरू किया जाना अत्यन्त आवश्यक है |  सब के चहरों की दवाइयां उड़ गई | हम सब ने एक स्वर में हनुमान चालीसा का लगातार जप प्रारम्भ कर दिया |  

                    उस पूरी रात हम में से कोई सो न सका |  भोर होने तक एक दूसरे को संभालते रहे, ढांढस बंधाते रहे |  मैं अपराधबोध से ग्रसित था लेकिन मेरा इस मामले में सप्रयास “ज्ञानी” बने रहना बाकी साथियों के आत्मविश्वास के लिये अत्यन्त आवश्यक था |  वो अब भी मेरे सानिध्य में स्वयं को सुरक्षित अनुभव कर रहे थे जो कि तत्कालीन परिस्थिति में जरूरी भी था | भोर होने तक हनुमान चालीसा का जप चलता रहा और हम सब सुरक्षित रहे | 

                         अगले दिन हममें से एक साथी जो सूचना लाया उससे मैं दहल उठा |  उसने बताया कि लगभग पांच दिन पूर्व ही एक नशेड़ी अनपढ़ नवयुवक ने अपने घर में , जो कि हमारे मकान के कुछ ही दूरी पर था, अपने ऊपर कैरोसिन डालकर आत्महत्या कर ली थी |  उसने उस नवयुवक का नाम कमल बताया  |  शेष साथियों के लिये यह एक सामान्य जानकारी थी कि “के एम एल”  से वो  अपना क्या  नाम  बता रहा  था |  

                     लेकिन मैं जो पूरी रात खुद को यह समझाता रहा था कि जरूरी मेरे ऊपर मनोवैज्ञानिक दबाव बन गया था जिसके चलते मेरी स्वयं की ही देह का स्पंदन मुझे कटोरी में अनुभव हुआ होगा और ऊँगली के दबाव के चलते कटोरी चलने लगी होगी,  इस कमल नाम के  खुलासे से  अत्यंत विस्मित  हो उठा |  

                     इस बात को बरसों बीत गए | तब से आज तक यह घटना एक रहस्य बनी हुई है |