मेरे एक मित्र के घर आज मै काफी समय बाद मिलने गया । वहां का माहौल मुझे अत्यंत तनावपूर्ण लगा । मित्र महोदय अपराधियों की तरह से मूंह लटकाए बैठे थे उनके सामने ही सेंटर टेबल पर तथा आस पास कुछ कंप्यूटर की सीडियां तोडने के प्रयास में मरोड कर फैंकी हुई थी तथा भाभी जी साक्षात रणचंडी स्वरूप में तमतमा रही थी । माहौल में सन्नाटा पसरा हुआ था जो कि जाहिर है मेरी वहां असमय हाजरी के कारण से अस्थाई रूप से उत्पन्न हुआ था । भाव भंगिमाएं सब कुछ कह रही थी । मैंने जो गरमजोशी से भाभीजी को नमस्कार चाय की प्याली के साथ कुछ नाशते की उम्मीद में हमेशा की तरह किया था, वह सिर्फ उनकी मुंडी ही हिलवा सका ।
मैंने हिम्मत करके पूछा तो भाभीजी फट पडी “अपने भाईसाहब को आप बहुत बढिया आदमी समझते हो पर ये एक दम घटिया मानसिकता के आदमी हैं ..अरे आदमी ही क्या मैं तो कहती हूं पशु हैं पशु ।”
भाईसाहब एक दम से चिल्ला पडे ” अरे चुप भी हो जा अब ! मैं क्या अकेला हूं दुनिया में जो ये सीडियां देखता हूं ? तुम ही कहो भाई मै….” उनके मुझसे मुखातिब होते ही मैं एकदम से हडबडा गया “भाईसाहब आप मुझे तो बिल्कूल न घसीटें मैं जरा जल्दी में हूं कल आप से मिलता हूं ” मैं एक दम से उठ कर रवाना होने लगा इतने में भाभीजी ने रोक लिया ” अरे आप कहां चले ? बैठिए चाय बना कर लाती हूं पीके जाइयेगा”
वो अंदर गई तो मैं भाईसाहब की तरफ अत्यंत कातर भाव से देख कर बोला ” अरे इस तरह के मामले में आप मुझसे कहां समर्थन लेने लगे ? इतना घटिया काम करते हुए आप को शर्म नहीं आई ? वो भी इस उम्र में?” भाईसाहब की आंखे कटोरियों में बैचेनी से घूम रही थी । मेरी उनसे आगे बात करने की इच्छा नहीं रही । कुछ देर में भाभीजी चाय ले आई । हम तीनों शांति से चाय पी रहे थे ।
इतने में भाईसाहब का 20 बरस का लडका जो इंजीनियरिंग में पढता है, वो आ गया । मैं उससे बतियाते हुए चाय पी ही रहा था कि उसकी नजर सीडियों पर पडी तब वह चौक कर बोला ” अरे ! ये सीडियां किसने खराब की है ? काहे की है ये ?” मेरे गले में चाय अटक गई ।
” हमारी शादी की हैं ” भाभीजी सामान्य स्वर में बोली ।
मैं हैरान सा उनकी तरफ देखता रह गया ।
“आज भी ये इन सीडियों को देख रहे थे रोजाना की तरह”
“तो इसमें इतना क्रोधित होने की क्या बात थी ?” मैं सिटपिटा कर बोला
” भईया ! क्रोध सीडी देखने पर नहीं बल्कि देखने के तरीके पर है ।”
“क्या मतलब ?”
“अरे ये सीडी को वहां से देखना शुरू करते हैं जहां वरमाला का दृश्य है । फिर ये सीडी को उल्टा धूमाते हैं यानी रिवर्स में देखते हैं दृश्य कुछ इसतरह का हो जाता है कि ये मेरे गले से वरमाला वापिस निकाल रहे हैं मैं इनके गले से वरमाला निकाल रही हूं , ये पीछे की तरफ जाते हैं उल्टे पैर भागते हैं धोडी पर चढते हैं फिर घोडी उल्टे पैर भाग जाती है । यह कहते हैं इस दृश्य को देख कर इन्हें बडा सकून मिलता है । मैंने आज सीडियां ही तोड दी । न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।”
हर बार पढ़ने में वैसा ही मजा आता है, जैसा उसे शादी की सीडी को रिवर्स में देखने में आता है ।।।
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हा हा हा 😊
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